• अपर मुख्य सचिव के.के. पाठक को पत्र जारी करने वाले मंत्री के आप्त सचिव की इंट्री पर रोक 
  • पीत पत्र का जवाब पीत पत्र से

बिहार सरकार में शिक्षा विभाग के मंत्री और विभाग के अपर मुख्य सचिव आईएएस के.के. पाठक के बीच तनातनी तेज हो गई है। लेकिन इसमें बलि का बकरा बन गए हैं मंत्री के आप्त सचिव डॉ. के.एन. यादव। डॉ. कृष्णा नन्द यादव ने ही एक जुलाई को अपर मुख्य सचिव को  पीत पत्र जारी किया था।

इस मामले में पीत पत्र का जवाब पीत पत्र से देते हुए शिक्षा विभाग में डॉ. के. एन. यादव की एंट्री पर रोक लगा दी है। इनकी सेवा भी खत्म करने की बात कही गई है। बुधवार को जारी पीत पत्र निदेशक (प्रशासक)- सह अपर सचिव सुबोध कुमार चौधरी ने जारी किया है। पत्र में कई कई गंभीर आरोप लगाए गए हैं। उनसे डॉ. की उपाधि लगाने का सबूत भी मांगा गया है।

पढ़िए पत्र 

डॉ० कृष्णा नन्द यादव,

मा० मंत्री के आप्त सचिव, शिक्षा विभाग, बिहार सरकार

निदेशानुसार, पिछले एक सप्ताह में आपके भांति-भांति के पीत-पत्रों में भांति-भांति के निदेश विभाग और विभागीय पदाधिकारियों को भेजे गए हैं। इस संबंध में आपको आगाह किया गया था कि आप आप्त सचिव (बाह्य) तौर पर हैं। अतः आपको नियमतः सरकारी अधिकारियों से सीधे पत्राचार नहीं करना चाहिए।

किन्तु आपके लगातार जारी अनर्गल पीत-पत्रों और अविवेकपूर्ण बातों से यह पता चलता है कि आपको माननीय मंत्री के प्रकोष्ठ में अब कोई काम नहीं है और आप व्यर्थ के पत्र लिखकर विभाग के पदाधिकारियों का समय नष्ट कर रहे हैं।

उल्लेखनीय है कि आपकी सेवाएं लौटाने के लिए सक्षम प्राधिकार को विभाग पहले ही लिख चुका हैं। विभाग द्वारा यह भी निदेशित किया गया है कि अब आप शिक्षा विभाग के कार्यालय में भौतिक रूप से प्रवेश नहीं कर सकते हैं। विभाग को यह भी पता चला है कि आप विभाग पर मुकदमा कर चुके हैं, जिसके कारण आपकी सेवा सामंजन का प्रस्ताव विभाग द्वारा काफी समय से लगातार खारिज किया जाता रहा है। अतः आप स्वयं एक माननीय विभागीय मंत्री के प्रकोष्ठ में काम करने के लायक नहीं हैं। इन्हीं कारणो से सक्षम प्राधिकार को आपको हटाने के लिए पत्र लिखा जा चुका है।

आपसे अनुरोध है कि आप स्वयं या अपने संरक्षकों (जिनके कहने पर ये तथाकथित पीत पत्र लिख रहे हैं) से पूरी प्रक्रियाओं से अवगत हो लें और उसके बाद ही किसी प्रकार का पत्राचार करें। व्यर्थ का पत्राचार करने से आपका और आपके संरक्षकों की कुत्सित मानसिकता और अकर्मण्यता जाहिर होती है। विभागीय पदाधिकारियों के लिए यह संभव नहीं है कि वे आपके हर प्रकार के पत्रों का बार-बार उत्तर देते रहेें।

विभाग में यह भी निर्देश निर्गत कर दिया गया है कि आपके द्वारा लिखे गए पत्र/ पीत पत्र तुरंत लौटा दिए जाएं। आपको पुनः अगाह किया जाता है कि आप व्यर्थ का पत्राचार न करें और अपने नाम के आगे जो डॉ. लगाते हैं उसका सबूत दें कि क्या आप वाकई किसी उच्च शिक्षण संस्थान में प्राध्यापक रह चुके हैं?

सुबोध कुमार चौधरी

निदेशक (प्रशासन)- सह अपर सचिव 

शिक्षा विभाग, बिहार, पटना

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