संवाददाता. पटना.

बीजेपी का लक्ष्य 400 पार का था लेकिन उसे 240 सीटों पर जीत हासिल हुई है। बहुमत के लिए चाहिए था 272 सीटें। हालांकि एनडीए ने देश में 293 सीटें हासिल की हैं। अब सरकार बनने में कोई दिक्कत नहीं है। नई सरकार के गठन से पहले नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रपति को अपना इस्तीफा सौंप दिया है। दूसरी तरफ इंडिया गठबंधन की बैठक दिल्ली में बुधवार को हुई। इंडिया गठबंधन बहुमत से 40 सीट पीछे रहा।

पीछे देखें तो दो बार से केंद्र में बीजेपी अपने बलबूते बहुमत पा ले रही थी लेकिन अबकी बार वैसी स्थति नहीं है। यही वजह है कि नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू की ताकत बढ़ गई है। बुधवार को जब नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव ने हवाई जहाज का सफर एकसाथ पटना से दिल्ली के लिए किया तो कई तरह के कयास लगने शुरू हो गए। लेकिन जेडीयू के वरिष्ठ नेता केसी त्यागी ने साफ कहा हम एनडीए के साथ थे और एनडीए के साथ रहेंगे।

बीजेपी की कमान जब से नरेन्द्र मोदी ने संभाली है उसके बाद से एनडीए के दो बड़े साथी शिव सेना और अकाली दल अलग हो चुके हैं। इसलिए चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार को साथ लेकर चलना नई सरकार के लिए बड़ी चुनौती होगी। दोनों ही नेता ऐसे हैं जो मोदी विरोध में भी कभी काफी सक्रिय रहे हैं। दोनों की एनडीए में वापसी लोकसभा चुनाव से पहले हुई है। गुजरात में 2002 में हुए दंगे के बाद चंद्रबाबू नायडू ने एनडीए में रहते हुए बतौर मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से इस्तीफा मांग लिया था।

आंध्र प्रदेश में टीडीपी को 16 सीटें आई हैं और बिहार में जेडीयू को 12 सीटें। नीतीश कुमार हों या चंद्रबाबू नायडू या नरेन्द्र मोदी तीनों नेता एक-दूसरे पर इतिहास में काफी टीका-टिप्पणी कर चुके हैं। नीतीश कुमार ने तो 2013 में नरेन्द्र मोदी की वजह से ही एनडीए का साथ छोड़ दिया था। तब नीतीश नहीं चाहते थे कि बीजेपी पीएम पद का चेहरे नरेन्द्र मोदी को बनाए। लेकिन  जब 2014 के लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू अपने बल बूते मैदान में उतरी तो दो सीटें हासिल कर पाई। नीतीश कुमार नरेन्द्र मोदी और लालू प्रसाद के साथ आने-जाने वाला कदमताल करते रहे। लालू प्रसाद के सत्ता में आने की शुरुआती बातों को छोड़ दीजिए तो बीजेपी लालू यादव की तरफ नहीं गई और न लालू यादव बीजेपी की तरफ गए। 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने आरजेडी के साथ चुनाव लड़ा और बड़ी जीत हासिल की। लेकिन दो साल बाद नीतीश फिर से एनडीए में आ गए थे और 2019 का लोकसभा चुनाव नरेन्द्र मोदी के साथ लड़ा। तब बिहार की 40 में से 39 सीटों पर एनडीए को बम्पर जीत मिली। 2020 का बिहार विधानसभा चुनाव नीतीश कुमार ने एनडीए के साथ लड़ा। बीजेपी ने चिराग के जरिए खेल किया और जेडीयू बिहार में तीसरे नंबर की पार्टी बन गई। नीतीश मुख्यमंत्री तो बने लेकिन जल्दी ही 2022 में वे तेजस्वी यादव की आरजेडी के साथ चले गए। कुछ समय साथ रहने के बाद जब लोकसभा चुनाव का समय नजदीक आया तो नीतीश 2024 के जनवरी में एनडीए में आ गए। इस बीच नीतीश कुमार बीजेपी के खिलाफ वाली इंडिया गठबंधन के सूत्रधार बने। पहली बैठक पटना में कराई। लेकिन उनको मनमाफिक प्रतिष्ठा वहां नहीं मिली।

नीतीश कुमार की राजनीति ऐसी रही है कि वे हमेशा एक खिड़की पड़ोस में खोल कर रखते हैं। यही वजह है कि इस बार भी सवाल उठ रहे हैं कि नरेन्द्र मोदी की सरकार नीतीश कुमार के साथ कितने दिन चल पाएगी! इंडिया गठबंधन ताक में है कि कब वे फिर से उनकी तरफ आएं। फिर से बता दें

बहुमत के लिए चाहिए 272  सीटें

बीजेपी को सीटें आईं- 240

एनडीए को आई सीटें- 293

जेडीयू को सीटें आईं -12

टीडीपी को सीटें आई -16

जेडीयू और टीडीपी मिलाकर सीटें- 28 सीटें

एनडीए को आई सीटों 293 में से जेडीयू और टीडीपीकी सीटें 28 घटाएं तो आएगा-265 (यही नीतीश कुमार चंद्रबाबू नाडयू की ताकत है।)

ये कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिस पर विवाद संभव है

  • वन नेशन वन इलेक्शन
  • समान नागरिक संहिता
  • पीएसयू में विनिवेश
  • एनआरसी
  • सीएए

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You missed