संवाददााता.

बिहार विधान सभा चुनाव में भाजपा, नीतीश कुमार की पार्टी जदयू से आगे निकलने में सफल रही। दोनों दलों के बीच पिछले दो दशकों से समझौता रहा है और दोनों एनडीए की सहयोगी पार्टियां रही हैं। पहले बिहार में जदयू बड़ा भाई था, अब भाजपा बड़ा भाई है। ऐसा पहली बार हुआ है। लोजपा इस बार अकेले दम पर चुनाव मैदान में थी। लोजपा को महज एक सीट मिली पर उसने नीतीश कुमार की पार्टी को एनडीए में छोटा भाई बनाने में बड़ी भूमिका निभाई। चिराग पासवान की पार्टी या चिराग के बारे में  प्रधानमंत्री ने भी अपनी चुनावी सभा में कुछ नहीं कहा।

इस चुनाव में 125 सीटों के साथ एनडीए को बहुमत मिला, लोजपा सिर्फ एक सीट (मटिहानी से लोजपा के राजकुमार सिंह को 300 वोटों से जीत मिली) जीत सकी लेकिन उसने जदयू को 34 सीटें हरवाने में किसी न किसी तरह से भूमिका निभाई। महागठबंधन के खाते में110 सीटें गईं।

बिहार विधान सभा की 243 सीटों में से भाजपा को 74, जदयू को 43, वीआईपी को 4, और हम पाार्टी को 4 सीटें मिलीं। यानी एनडीए को कुल 125 सीटें हासिल हुईं। महगठबंधन में  राजद को 75, कांग्रेस को 19, वम दलों को 16 सीटें मिलीं। यानी कुल 110 सीटें महागठबंधन के खाते में गईं।  लोजपा को एक और ओवैसी की एआईएमआईएम ने 5 सीटें जीत लीं।

पिछली बार एनडीए के पास 125 सीटें थीं और इस बार भी उसके पास उतनी ही सीटें हैं। विपक्ष के पास पिछली बार 110 सीटें थीं और इस बार भी उतनी ही सीटें हैं। जदयू की सीटें घटीं जिसे वीआईपी और हम ने बराबरी पर पहुंचाया। विपक्ष में राजद की पांच और कांग्रेस आठ सीटें घटीं। घाटे की पूर्ति वामदलों ने की है।

जैसा कि पहले से ही भाजपा के नेता कहते रहे हैं कि कम सीटें भी जदयू को आए तब भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही होंगे। लेकिन भाजपा को ज्यादा सीटें आने का असर बिहार की राजनीति पर पड़ना तय है।

इस चुनाव में एनडीए और महागठबंधन के बीच कांटे का मुकाबला हुआ है। तेजस्वी यादव पूरे चुनाव में कहते रहे कि नीतीश कुमार थक चुके हैं। तेजस्वी ने सरकार बनने पर पहली कैबिनेट  बैठक में 10 लाख युवाओं को स्थायी सरकारी नौकरी देने का वादा भी किया पर उनका महागठबंधन, एनडीए से बढ़त नहीं बना सका। बिहार की राजनीति में अब नीतीश कुमार के फैसला का हर किसी को इंतजार है कि वे क्या करते हैं। नीतीश कुमार बड़े फैसले लेने के लिए जाने जाते हैं। वे भाजपा के हिन्दुत्व के मुद्दे पर अलग सोच भी रखते हैं। यह भी कि वे कई बार चुप रहे।

साल 2015 के विधानसभा चुनाव में जदयू को 71 सीटें हासिल हुई थीं। तब जदयू का राजद के साथ गठबंधन था। भाजपा ने 2013 के लोकसभा चुनाव में जब नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित किया तो नीतीश कुमार ने विरोध करते हुए 17  साल पुराना गठबंधन तोड़ लिया।  बाद में जब नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए को लोकसभा चुनावों में बहुमत मिला तो नीतीश कुमार का राजद से मतभेत शुरू हो गया। आगे राजद से अलग होकर उन्होंने भाजपा का साथ लेकर बिहार के मुख्यमंत्री बन गए। वर्ष 2010 के विधान सभा चुनाव में जदयू को 115 सीटों मिली जबकि भाजप को 91 सीटें। वर्ष 2005 के विधान सभा चुनाव में जदयू को 88 सीटें मिली और भाजपा को 55 सीटें।

राजद का आरोप

राजद ने आरोप लगाया है कि साजिश के तहत चार से पांच घंटों तक एनडीए को 122 और महागठबंधन को 96-100 पर रोक कर रखा गया था। राजद ने 10 सीेटं पर फिर से काउंटिंग की मांग की।  भाकपा माले ने  भोरे, दरौंद और आर विधान सभा की सीटों पर फिर से काउंटिंग की मांग की।

 

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