पर्यावरणः प्रणय प्रियंवद.
राष्ट्रीय पक्षी मोर की खूबसूरती ही ऐसी है कि वह हर किसी का मन मोह लेता है। नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का भी मन मोह लिया मोरों ने। बिहार के बाल्मीकि नगर और भीमबांध के जंगलों में भी मोर हैं। भीमबांध में एक जगह है जिसका नाम है मोरबन्ना। लोग बताते हैं कि एक समय था जब यहां मोर खूब हुआ करते थे। बिहार में अभी पूर्वी चंपारण का माधोपुर गोविंद गांव और सरहसा का आरण गांव मोरों के स्वच्छंद विचरण करने वाली वैसी जगह है जिसे इको टूरिज्म के रुप में विकसित किया जा सकता है। यहां मोरों के संरक्षण में स्थानीय लोगों की बड़ी सहभागिता है।
पटना में राजधानी वाटिका का उद्घाटन करते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि यहां मोर छोड़े जाएंगे और इसके लिए उन्होंने बिजली के नंगे तारों को अंडरग्राउंड करने का निर्देश दिया। वाटिका के चारों ओर मंत्रियों के आवास से लेकर बेली रोड के बड़े हिस्से में बिजली के तारों को अंडरग्राउंड भी किया गया। इस इलाके में मोर दिखे भी। कई बार ये मोर और उनके बच्चे मंत्रियों-जजों के आवास के आसपास देखे भी गए। राबड़ी देवी के आवास और नीतीश कुमार के आवासीय परिसर में इन मोरों ने ठिकाना बना लिया। अंडे भी दिए। मोरों का नाचते हुए वीडियो भी वायरल हुआ। ये ज्यादा दिन पहले की बात नहीं है बल्कि 2015 से 2020 के बीच की ही बात है। बाद में बर्ड फ्लू की खबर आई तब यह खबर भी आई की पटना चिड़िय़ाघर के कई मोर इससे मर गए। मोरों की संख्या पटना चिड़ियाघर में कितनी बढ़ी और अब कितने मोर हैं इसका आंकड़ा वेबसाइट पर डालना चाहिए पर सच्चाई के साथ यह नहीं मिलेगा।
बिहार में मोर वाले इलाके भी हैं जहां काफी संख्या में मोर दिखते हैं। लोगों की छत की मुंडेर से लेकर खेत-खलिहानों तक। ये दो इलाके हैं पूर्वी चंपारण में चकिया के पास माधोपुर गोविंद और सहरसा में आरण गांव। वर्ष 2011 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार माधोपुर गोविंद गए थे। उन्होंने इसे विकसित कराने के लिए सर्वे भी करवाया। बर्ड और खास तौर से गरुड़ पर काफी काम करने वाले भागपुर के अरविंद मिश्रा ने रिपोर्ट तैयार की। उनके साथ बेगूसराय मंझौल के मीरशिकार अख्त हुसैन भी माधोपुर गए थे। अरविंद मिश्रा ने माधोपुर गोविंद पर 2012 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी। वे बताते हैं कि उन्होंने इस गांव में लगभग 70 मोर देखे थे। माधोपुर गोविंद के अलावा बिहार में मोरों का गांव सहरसा का आरण गांव है। सहरसा के तत्कालीन डीएफओ सुनील कुमार के आग्रह पर अरविंद मिश्रा आरण गांव गए। अरविंद मिश्रा ने इस पर भी रिपोर्ट तैयार की और सरकार को बताया कि इस गांव में इतने मोर क्यों रहते हैं, कैसे रहते हैं और इनका विकास कैसे हो सकता है। अरविंद मिश्रा बताते हैं कि जब वे कई वर्ष के बाद फिर से माधोपुर गोविंद गांव गए तो मोरो की संख्या कम होते हुए देखी। एक बार फिर से दुहराना जरूर है कि सरकार माधोपुर गोविंद और आरण गांव को इको टूरिज्म के रुप में विकसित कर सकती है।