संवाददाता.

आरजेडी (राष्ट्रीय जनता दल) के संस्थापक सदस्यों में एक रघुवंश प्रसाद सिंह ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद को दिल्ली एम्स से एक पत्र लिखा और पार्टी से इस्तीफा दे दिया। पत्र में उन्होंने पार्टी नेता, कार्यकर्ता और आमलोगों से क्षमा भी मांगी। रघुवंश बाबू ने अपने इस्तीफे में कहा है कि जननायक कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद 32 वर्षों तक आपके पीठ पीछे खड़ा रहा, लेकिन अब नहीं। इस पत्र के जवाब में लालू प्रसाद ने रघुवंश बाबू को लिखा है कि कथित तौर पर लिखी एक चिट्ठी मीडिया में फैलाई जा रही है। मुझे तो विश्वास ही नहीं होता। … आप जल्द स्वस्थ हों और फिर हम मिल बैठ कर बात करेंगे। आप कहीं नहीं जा रहे हैं समझ लीजिए।

बता दें कि रघुवंश बाबू आरजेडी में रामा सिंह की इंट्री की बात को लेकर नाराज चल रहे हैं। अभी तक रामा सिंह की इंट्री आरजेडी में नहीं हो पाई है। पार्टी के अंदर प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह की बढ़ती पकड़ से भी रघुवंश बाबू नाराज थे। सूत्र बताते हैं कि दोनों सवर्ण जाति के चेहरे के बीच अंदरुनी खींचतान की स्थिति थी।

रघुवंश प्रसाद सिंह के बारे में

रघुवंश प्रसाद मूलरूप से वैशाली जिले के महनार के लावापुर नारायण के पानापुर शाहपुर के रहनेवाले हैं। छह जून 1946 को उनका जन्म हुआ। उन्होंने मुजफ्फरपुर स्थित बिहार यूनिवर्सिटी के एलएस कॉलेज और राजेंद्र कॉलेज से उच्च शिक्षा ग्रहण की। गणित में मास्टर की डिग्री लेने के बाद उन्होंने गणित विषय में पीएचडी भी की है। बिहार यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट की डिग्री लेने के बाद डॉ रघुवंश प्रसाद सिंह ने साल 1969 से 1974 के बीच करीब पांच सालों तक सीतामढ़ी के गोयनका कॉलेज में गणित पढ़ाया। इस लिहाज से वे पढ़े-लिखे वैसे नेता थे जिनके पास गांव की माटी का अक्खड़पन भी है। वे बोलते हैं तो अक्सर मुहावरों का उपयोग करते हैं।शिक्षक आंदोलनों में भाग लेते हुए वे कई बार जेल भी गए। जेल में बंद रहने का वजह से सरकार ने उन्हें प्रोफेसर के पद से बर्खास्त कर दिया था। कर्पूरी ठाकुर के साथ उऩ्होंने अपना राजनीतिक सफर शुरू किया। पटना के बांकीपुर जेल में लालू प्रसाद से उनकी पहली बार मुलाकात हुई। तब लालू प्रसाद पटना यूनिवर्सिटी में छात्र नेता थे। लालू प्रसाद ने आरजेडी में एक नेता का काट दूसरा नेता भी रखते थे। जैसे कि उऩ्होंने रघुवंश बाबू का काट जगदा बाबू को बना कर रखा था।

साल 1977 से 1990 तक वह बिहार विधानसभा के मेंमर रहे। इस दौरान वे 1977 से 1979 तक बिहार सरकार में ऊर्जा राज्य मंत्री रहे।1990 में वे बिहार विधानसभा में डिप्टी स्पीकर बनाए गए।1991 में वे बिहार विधान परिषद गए जहां 1994 तक  डिप्टी लीडर रहे। 1994 से 1995 तक वह बिहार विधान परिषद के चेयरमैन रहे। 1995-96 में बिहार सरकार में ऊर्जा,  राहत, पुनर्वास और राजभाषा विभाग के मंत्री रहे।

1996 में 11वीं लोकसभा के सदस्य निर्वाचित बने। साल 1996-97 में केंद्रीय राज्य मंत्री, पशुपालन और डेयरी (स्वतंत्र प्रभार) और साल 1997-98 में खाद्य और उपभोक्ता मामले के केंद्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) रहे।1998 में हुए वे 12वीं लोकसभा चुनाव में दूसरी बार जीते।1999 में हुए लोकसभा चुनाव में तीसरी बार चुने गए। 2004 में चौथी बार चुनाव जीत कर 14वीं लोकसभा के सदस्य बने। 2004 से 2009 तक वे ग्रामीण विकास विभाग में केन्द्रीय मंत्री रहे। 2009 में पांचवीं बार लोकसभा के सदस्य चु

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