- ओपिनियन- प्रणय प्रियंवद
बिहार में दलित राजनीति चरम पर है। दलितों के राष्ट्रीय स्तर के नेता रामविलास पासवान को अपन बेटे में सीएम मेटेरियल दिख रहा है। उनके बेटे और एलजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष सांसद चिराग पासवान, नीतीश सरकार पर हमलावार हैं। बिहार का विपक्ष भी कई बार उऩके बयानों से पिछड़ जा रहा है। लोग यही मान रहे हैं कि बिना बीजेपी की हरी झंडी मिले चिराग पासवान, नीतीश कुमार को इस तरह से घेर नहीं सकते। यानी थोड़ा आगे बढ़ कर सोचें तो नीतीश कुमार को इस बार गोल करने से रोकने में विपक्ष के साथ एनडीए के घटक दल भी लगे हुए हैं। कोई अंदर से कोई बाहर से। बिहार में वर्षों तक मंत्री पद पर रहे दलित नेता श्याम रजक ने भी नीतीश कुमार का साथ छोड़ दिया। छोड़ा तो छोड़ा कई तरह के गंभीर आरोप भी लगाए। कहा सामाजिक न्याय हर हाल में उनके लिए जरूरी है। उनके आरोपों से लगा कि वे जेडीयू या सरकार के अंदर प्रताड़ित हो रहे थे। नौकरशाही की मनमानी का आरोप भी लगाया। अब जेडीयू की नजर जीतन राम मांझी पर है। वे हम पार्टी के सुप्रीमो हैं पर यह वैसी पार्टी है जिसमें एक विधायक है। अपने एक बेट को आरजेडी के साथ जाकर एमएलसी बनवाने में वे सफल हो गए थे। जीतनराम मांझी की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वे बिहार के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। शुरू में तो वे नीतीश कुमार की हां में हां और ना में ना करते रहे लेकिन जल्दी ही उन्होंने खड़ाऊं शासन से इंकार कर दिया। तब यह कहा गया कि वे बीजेपी की गोद में चले गए हैं। जेडीयू के कई नेताओं को साथ लेकर उन्होंने एक ताकत खड़ी करने की कोशिश की पर फ्लोर पर चित हो गए। नीतीश कुमार ने उन्हें नौ माह में ही हटा दिया। जेडीयू से भी निकाल दिया। अब उनकी पार्टी हम पर सिंबल के लिए भी आफत है। वे पार्टी को बचाते हुए जेडीयू के साथ जाते हैं या पार्टी का ही विलय कर देते हैं इसका इंतजार सब को है। वे बयान बहादुर हैं। जब मुख्यमंत्री बने थे तब बयानों से ही रजनीति को गरमाए रहते थे। लेकिन अब उनके बयान से राजनीति नहीं गरमा रही। अब अखबार पर सरकार का पहरा है।
गुरुवार को तेजस्वी यादव ने अपने चार दलित धाकड़ नेताओं को मैदान में उतारा कि वे नीतीश सरकार को बयानों से भर पेट धोएं। आरजेडी के दलित चेहरा उदय नारायण चौधरी, शिवचंद्र राम, रमई राम और श्याम रजक ने एक साथ मिलकर प्रेस कॉन्फेंस किया। चारों ने कहा, नीतीश सरकार दलित विरोधी है और बिहार में दलितों पर अत्याचार बढ़े हैं। नीतीश सरकार ने दलितों को बांट कर रख दिया है। श्याम रजक ने कहा कि बिहार में दलितों पर अत्याचार का आंकड़ा बढ़ गया है। 2005 में 7 फीसदी था वह बढ़कर 17 फीसदी हो गया है। बिहार में दलितों पर अत्याचार देश में तीसरे स्थान पर है। ये आंकड़े मैं केंद्र सरकार का दे रहा हूं। आरक्षण में प्रोन्नति का मामला 11 साल से लंबित है। नई शिक्षा नीति के तहत दलित और वंचित शिक्षक नहीं बन पाएंगे, क्यों निजी हाथों में शिक्षण संस्थान जा रहे हैं। बिहार में सरकार कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर काम ले रही है। आरक्षित पदों पर भी कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर सरकार काम ले रही है। बिहार के बजट का मात्र 11 फीसदी की खर्च हुआ है। बिहार में अधिकारियों के बीच पैसों की बंदरबांट हो रही है। बिहार पब्लिक सर्विस कमीशन और पुलिस चयन आयोग में कोई भी सदस्य अनुसूचित जाति जनजाति का नहीं है।
अब बारी शिवचंद्र राम की थी। उन्होंने बोलना शुरु किया। कहा कि बिहार सरकार ने गरीब और एससी-एसटी वर्ग के लोगों के साथ कुठाराघात किया है। केंद्र और राज्य सरकार आरक्षण को खत्म करने की कोशिश कर रही है। बीपीएससी में एससी-एसटी का कोई सदस्य नहीं है, सदस्य बनाने को लेकर हमने 2016 से मांग की है पर अब तक नीतीश सरकार ने इस काम को नहीं किया है। एससी- एसटी के नाम पर योजना जरूर बनती है, मगर उन्हें फायदा नहीं मिलता है। सभी सरकारी विभागों में एससी-एसटी के लिए कल्याणकारी कार्य के लिए 20 फीसदी अतिरिक्त फंड आते हैं।
उदय नारायण चौधरी बिहार में विधान सभा अध्यक्ष रह चुके हैं। उन्होंने जब बोलना शुरू किया तो कई आरोप मढ़े। चौधरी ने कहा कि बिहार में डबल इंजन की सरकार में दलित पिछड़ों पर सबसे ज्यादा अत्याचार हुए हैं। दलित और आदिवासी छात्रों की छात्रवृत्ति बंद कर दी गई। सरकारी नौकरियों में बैकलॉग के पद को नहीं भरा गया। बिहार में शराबबंदी के चलते 70 हजार दलितों पर केस दर्ज किया गए हैं।
इन चारों नेताओं ने एक जगह एकजुट होकर बयान इसलिए दिया है कि दलितों के 16 फीसदी वोट बैंक पर नजर है। उधर एनडीए गठबंधन में भी नीतीश कुमार पर एक दलित नेतृत्व वाली पार्टी का दबाव है। रामविलास पासवान और चिराग पासवान की पार्टी एलजेपी 45 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है लेकिन नीतीश कुमार उन्हें 30 से ज्यादा सीटें देने के पक्ष में नहीं हैं। नतीजा दबाव जारी है।
यानी कुल जमा यह कि नीतीश कुमार को दलित राजनीति से घेरने की दमदार कोशिश जारी है। मांझी जैसे नेता जिनक पार्टी को चुनाव में जनता ने ऐसा नकारा की पूछिए मत। वें इमामगंज और मखदुमपुर से लड़े और अपनी परंपरागत सीट मखदुमपुर को गंवा इमामगंज को किसी तरह बचा पाए। गया में लोकसभा चुनाव हार गए। एक विधायक वाली पार्टी के सुप्रीमो के जेडीयू में आने-जाने से बहुत फर्क नहीं पड़ेगा। मांझी को सीएम बनाने और नौ माह में ही हटाने पर एक मुहावरा आया था- मति मारी गई है। नीतीश कुमार ने तब कहा था उनसे गलती हुई, इंसान से गलती होती रहती है वह गलती का परिमार्जन करता है। नीतीश कुमार एक बात और कहते रहे हैं घर में आग लगे तो नाली के पानी से भी आग बुझानी पड़ती है।
इस बार दलित राजनीति की आग तेज भड़की हुई है। बुझाना इतना आसान नहीं, नाली के पानी पर भी आफत संभव है। यह सोलह आने सच बात है 16 परसेंट पर। नीतीश कुमार को सीएम पद पर जाने से रोकने में कोई शक्ति ज्यादा रोड़ा बन सकती है तो वह यही है, यही है, यही है।