लेखक- डॉ. ओम प्रकाश साह प्रियंवद
आज 24 जनवरी 2024 को कर्पूरी ठाकुर की सौवीं जयंती (जन्म शताब्दी) है। उनके जन्म दिन से एक दिन पहले केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने उन्हें भारत रत्न देने की घोषणा की है।
कमजोर, निर्बल, दमित जातियों को गोलबंद करना कर्पूरी ठाकुर के जीवन संघर्ष का सार है। उनका संघर्ष देश को आजाद कराने की लड़ाई से शुरु हुआ। आजादी के बाद समाजवादी समाज बनाने के देशव्यापी संकल्प को रूपाकार देने के संघर्ष में वे भिड़ गए। समाजवादी आंदोलन को उन्होंने धार दी। उनका जन्म 1924 में हुआ था और इस लिहाज से उनके जन्म का शताब्दी वर्ष 2024 है। बिहार के समस्तीपुर जिला के पितौजिया गांव में एक निर्धन नाई परिवार में उनका जन्म हुआ था।
विधायक पद से इस्तीफा देने में आगे
पहली बार उन्हें स्टूडेंट फेडरेशन के सचिव की हैसियत से भाषण देने के आरोप में कोर्ट द्वारा एक दिन का कारावास और 50 रुपए का जुर्माना हुआ था। दूसरी बार 1942 के अगस्त आंदोलन में जेल गए। तीसरी बार आपात काल में जेल की यातना झेलनी पड़ी। वे 1974 में जयप्रकाश नारायण के आंदोलन में विधायक पद से इस्तीफा देने वाले नेताओं में अगुआ रहे।1967 में पहली बार संयुक्त विधायक दल सरकार में उपमुख्यमंत्री रहे।1971में पहली बार वे मुख्यमंत्री और1977 में दूसरी बार बिहार के मुख्यमंत्री हुए।1977 में लोकसभा के सदस्य हुए।
हम दोनों में से एक ही चुनाव लड़ेगा
कर्पूरी ठाकुर का जीवन फक्कड़ रहा। राजनीति में शुचिता को वे इतना अधिक महत्व देते थे कि जब पार्टी के भीतर उनके बेटे रामनाथ ठाकुर को चुनाव लड़ाने की बात उठी तो उन्होंने कहा, तब मैं चुनाव नहीं लड़ूंगा। हमदोनों में से किसी एक को चुनना होगा। कर्पूरी जब भी सत्ता में रहे अपनी शक्ति का पूरा उपयोग गरीबों और लाचारों के लिए किया।1967 की संयुक्त विधायक दल की सरकार में जब वे मुख्यमंत्री थे, उनके जिम्मे शिक्षा विभाग था। उन्होंने जब यह देखा कि गरीब छात्र स्कूल फीस नहीं दे पा रहे और इस वजह से उनहें स्कूल छोड़ना पड़ रहा है तो उन्होंने स्कूल फीस समाप्त कर दी। उनका कहना था कि शिक्षा को ज्ञान का साधन मात्र न मानकर उसे संपूर्ण गुणात्मक जनसंख्या के गठन का औजार मानना चाहिए। अंग्रेजी हटाओ उसी की एक कड़ी थी। उनके सामने समतामूलक समाज का बड़ा सपना था। अंग्रेजी की अनिवार्यता की वजह से विशेषकर लड़कियों और किसान- मजदूर परिवार के बच्चों की पढ़ाई बीच में ही छूट जाती थी। उन्हें ननमैट्रिक होने का उपहास झेलते रहना पड़ता था। उन्होंने अंग्रेजी की अनिवार्यता खत्म कर दी। तब इसका बड़ा असर हुआ और शिक्षा का अधिक प्रसार हुआ। यह शिक्षा का जनतंत्रीकरण था। 1971में जब कर्पूरी ठाकुर थोड़े समय के लिए मुख्यमंत्री रहे तब अलाभकर जोतों से मालगुजारी खत्म कर दी।1977 में मुख्यमंत्री हुए तब पिछड़े वर्गों को सरकारी सेवाओं में आरक्षण देने संबंधी मुंगेरीलाल कमीशन की सिफारिशें लागू कर दीं। संपूर्ण उत्तर भारत में इसी के साथ सामाजिक न्याय की राजनीति की शुरुआत हो सकी। इस कारण कर्पूरी ठाकुर को मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा।
जननायक कर्पूरी ठाकुर की फाइल फोटो
ठकैता डोम को मुखाग्नि दी
जब वे मुख्यमंत्री थे तभी नगर निगम के एक सफाई कर्मचारी ठकैता डोम की पुलिस हाजत में मौत हो गई। तब उन्होंने मामले की लीपापोती नहीं की बल्कि पुलिस की गलती मानी। ठकैता डोम को उन्होंने पुत्रवत खुद मुखाग्नि दी।
रिक्शा मत बुलाइए मैं रिक्शा नहीं चढ़ता हूं
उनके जन्म दिन पर उनके साथ पूरा एक दिन बिताने का समय याद आ रहा है। तब इंद्र कुमार बाबू एमएलसी थे। वे मेरे घर जमालपुर आए। आकर उन्होंने कहा कि बेटी के लिए एक लड़का देखने आया हूं, मेरे साथ कर्पूरी ठाकुर भी आए हुए हैं। उनको भागलपुर रेलवे के रिटायरिंग रूम में ठहरा कर आपके पास आया हूं। मैंने इदकुमार जी से पूछा लड़का कहां का है? उन्होंने बताया भागलपुर सराय का है। विस्तार से उन्होंने लड़के के बारे में जानकारी दी। मैंने कहा हां हमारे रिलेशन में ही है लड़का। मैं, इंद्रकुमार जी और कपूरी जी तीनों भागलपुर के सराय पहुंचा, लड़का देखने। लड़का घर पर मौजूद नहीं था। तभी इंद्रकुमार बाबू कहीं निकल गए। देर होने लगी तो कर्पूरी जी और हम बाहर निकले। मैंने रिक्शे वाले को आवाज दी कि सराय से स्टेशन तक जाना है। लेकिन कर्पूरी जी ने मुझे रोक दिया। कहा- मैं रिक्शा पर नहीं चढ़ता हूं।
मुझे कलेक्टर से पहले कोल्ड ड्रिंक्स लेनी पड़ी
इसके बाद मैं और कर्पूरी जी सराय से स्टेशन तक पैदल गए। स्टेशन के रिटायरिंग रूम में हम दोनों पहुंचे। हम सभी के लिए कोल्ड ड्रिक्स मगायी गई। बैरा को मैंने इशारा किया कर्पूरी जी और डीएम साहब को पहले दो। तभी जननायक ने कलेक्टर साहब को रोक दिया। कहा- कलेक्टर बाद में लेगा, पहले आप लीजिए ओम प्रकाश बाबू। आप एक शिक्षक हैं। उनके कहने के बाद सबसे पहले मुझे कोल्ड ड्रिक्स की गिलास उठानी पड़ी, कर्पूरी जी ने भी उसके बाद ही गिलास उठाया।
धारा प्रवाह अंग्रेजी बोलने लगे
कपूरी जी जब मुख्यमंत्री नहीं रह गए थे तब भी लोग इसको लेकर उनका मजाक उड़ाते थे। जिस दिन मैं भागलपुर में था उसी समय एक संवाददाता सम्मेलन में कर्पूरी जी हमें भी साथ लेते हुए गए। कर्पूरी जी पत्रकारों के सवालों का जवाब दे रहे थे कि तभी एक अंग्रेजी अखबार के पत्रकार ने कहा कि अंग्रेजी में बोल देते तो थोड़ी सहूलियत होती। सभी समझ गए कि चुटकी ली जा रही है। कर्पूरी जी कोई कठिन हिंदी बोल भी नहीं रहे थे। कपूरी जी से जब अंग्रेजी में बोलने का आग्रह किया गया तो उन्होंने धारा प्रवाह अंग्रेजी बोलना शुरू कर दिया। आग्रह करने वाले पत्रकार सहित सभी लोग भौचक रह गए।
अतिपिछड़ा आरक्षण के सूत्रधार
ईवनिंग कॉलेज जमालपुर (अब इसका नाम जमालपुर कॉलेज, जमालपुर है) से जुड़ी समस्याओं के समाधन के लिए कर्पूरी ठाकुर से कई बार पटना में कभी उनके जनता दरबार में तो कभी आवास पर हमारा मिलना हुआ। हर बार मैंने देखा वे युवाओं की शिक्षा के प्रति काफी सजग हैं। वे जब मुख्यमंत्री रहे तब भी और जब नेता प्रतिपक्ष हुए तब भी शिक्षा के प्रति उतने ही जागरुक और उतने ही ईमानदार दिखे। वंचितों को अधिकार दिलाने की लड़ाई उन्होंने ताउम्र लड़ी। उन्हें ऐसे ही नहीं कहा जाता है जननायक! अतिपिछड़ा आरक्षण के बारे में सबसे पहले उन्होंने ही सोचा था बिहार में।
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लेखक का संपर्क-
डॉ. ओम प्रकाश साह प्रियंवद
केशोपुर, गेट नंबर-6, जमालपुर, मुंगेर
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