संवाददाता.
तीसरे और अंतिम चरण चुनाव भी हो गया। इस पूरे चुनाव में जो बड़ी बात यह हुई की बिहार की राजनीति में एक युवा नेता ने खुद को सीएम पद के लिए स्थापित किया। दो सौ से ज्यादा सभाएं करके ही नहीं बल्कि नौकरी का वादा, बेरोजगारी दूर करने, संविदा को खत्म करने और मानदेय बढ़ाने का ऐसा संकल्प उन्होंने दुर्गा कलश की स्थापना के साथ लिया जिस पर लोगों को विश्वास हो चला। लोग लालू प्रसाद-राबड़ी देवी का 15 साल भूल गए ! भूल गए कि नहीं यह रिजल्ट बताएगा क्योंकि एनडीए ने ‘जंगलराज’ की खूब याद दिलाई।
दूसरी बड़ी बात यह हुई कि नीतीश कुमार के अब मुख्यमंत्री बनने पर ग्रहण लगता दिख रहा है। ऐसा अंदर से भाजपा भी नहीं चाहती है। चिराग या लोजपा के विरोध में एक शब्द प्रधानमंत्री ने नहीं कहा, जबकि चिराग नीतीश कुमार को जांच में जिम्मेदार पाए जाने पर जेल भेजने की बात करते रहे। जदयू अब शायद ही बड़ा भाई रह पाए।
पूरे चुनाव में तेजस्वी, लालू की तरह बोलते जरूर नजर आए पर कोशिश की कि भाषण हल्का न हो, नौकरी देने का संकल्प कमजोर नहीं होने पाए। नीतीश कुमार ने चुनाव को संभालने की दो बार कोशिश की। पहली बार उन्होंने कहा कि आबादी के हिसाब से आरक्षण देंगे। इसका खंडन किया भाजपा के वरिष्ठ मंत्री रविशंकर प्रसाद ने। दूसरी बार नीतीश कुमार ने कहा कि किसी को कोई बिहार से नहीं निकाल सकता, किसी की मजाल नहीं। यह उन्होंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी के बयान के विरोध में दिया। तीसरा पासा नीतीश कुमार ने फेंकते हुए कहा कि यह उनका अंतिम चुनाव है और वोट दीजिए। अंतिम पासा उन्होंने तब फेंका जब तीसरे फेज का चुनाव था। यानी काफी देर से उन्होंने यह ब्राह्मास्त्र फेंका। लेकिन मुसलमानों की आस्था के नायक अब नीतीश कुमार नहीं रह गए हैं। एनआरसी से लेकर राममंदिर के भूमि पूजन तक पर नीतीश कुमार चुप रहे। जिस नीतीश कुमार के बारे में कहा जाता रहा है कि उन्होंने बिहार में भाजपा को मजबूती दी अब वही भाजपा नीतीश कुमार को कमजोर करने में लगी हुई दिखी। बिहार में यादवों और मुसलमानों ने एकजुट होकर राजद-कांग्रेस के पक्ष में वोट किया।
नीतीश कुमार को सबसे ज्यादा नुकसान इस बयान से हुआ जब उन्होंने तेजस्वी की ओर से नौकरी के वायदों का मजाक उड़ाते हुए कहा कि पैसा कहां से आसमान से आएगा। जवाब में तेजस्वी ने बताया कि पैसे कहां से आएंगा। यानी राजद के मुद्दे का जवाब देने में ही नीतीश कुमार और उनके सिपाहसालारों का समय निकल गया। इससे लोगों में गुस्सा भी आया। नीतीश कुमार को उस बयान से भी काफी नुकसान हुआ जिसमें उन्होंने कहा कि बिहार में उद्योग लगाने में वे इसलिए सफल नहीं हो पाए कि बिहार में समुंदर नहीं है। यह समुंद्र किनारे नहीं है। नेता प्रतिपक्ष ने बताया कि कौन-कौन से राज्य हैं जो समुद्र के किनारे नहीं बसे होने के बावजूद उद्योगों को बढ़ावा दे रहे हैं। बिहारियों को नौकरियां दे रहे हैं।
लालू-राबड़ी राज में ग्रेजुएशन की डिग्री पांच छह साल में मिलती थी लेकिन तेजस्वी नीतीश सरकार पर आरोप लगाते रहे कि नीतीश सरकार में तीन साल में ग्रेजुएशन की डिग्री नहीं मिल रही, उनकी सरकार आएगी तो वे तीन साल में डिग्री देंगे। यानी वे यह बताते रहे कि वे लालू पुत्र हैं लेकिन उनका शासन अलग तरीके का होगा। बड़े भाई तेजप्रताप यादव को भी शायद यह इंस्ट्रक्शन था कि वे कुछ अनर्गल बयान न दें। रघुवंश प्रसाद सिंह पर दिया गया एक लोटा पानी वाले बयान के बाद उनका कोई खास बयान नहीं आया।
तेजस्वी ने रोजगार का मुद्दा लाकर नीतीश कुमार से अतिपिछड़ा वोट बैंक को तोड़ा है। चिराग पासवान ने जेडीयू के हर मजबूत प्रत्याशी को कमजोर करने की कोशिश की। राघोपुर में चिराग पासवान ने एनडीए के उम्मीदवार सतीश कुमार को कमजोर करने और तेजस्वी को मजबूत बनाने के लिए अपना उम्मीदवर दिया।
तेजस्वी को कांग्रेस का साथ लेने का फायदा मिला पर कांग्रेस को ज्यादा सीटें देना तेजस्वी के लिए ठीक नहीं हो सकता है। तेजस्वी, उपेन्द्र कुशवाहा और मुकेश सहनी की पार्टी को महागठबंधन से अलग कर ज्यादा सीटें अपने पास रखने में सफल हुए। इसका लाभ तेजस्वी यादव को मिलेगा। राजद सिंगल लाज्रेस्ट पार्टी हो सकती है। यह भी संभव हो सकता है कि तेजस्वी बड़े ताकतवर नेता के रुप में उभरें और नीतीश कुमार ढलान पर चले जाएं। तेजस्वी ने एक-दो महीने में बिहार की राजनीति का समां बदल दिया।
नीतीश कुमार ने कुछ काम बहुत बेहतर किया। बड़ा काम यह किया कि बिहार सुधर नहीं सकता इस अवधारणा को बदलने में उन्हें लंबा समय लगा। वे भवनों वाले, म्यूजियम वाले यानी एक अच्छे आर्किटेक्ट शासक के रुप में याद किए जाएंगे। उन्होंने पंचायत और निकाय चुनाव में अतिपिछडो़ं को आरक्षण देकर बड़ा काम किया। महिलाओं को नौकरी में आरक्षण दिया। उनकी साइकिल .योजना को बड़ी सराहना मिली। लेकिन कोई मुद्दा हमेशा ताकतवार नहीं रहता।
तेजस्वी की शायद ही कोई सभा होगी जिसमें उन्होंने नहीं कहा होगा कि नीतीश कुमार थक गए हैं, हम युवा सरकार देने आए हैं। हम पहली कैबिनेट में पहली कलम से 10 लाख युवाओं को स्थायी सरकारी नौकरी देंगे।
महामारी कोरोना काल में बिहार में चुनाव हुए। नीतीश कुमार या उनकी पार्टी ने ऐसे समय में चुनाव कराए जाने का कभी विरोध नहीं किया। विरोध राजद सहित कई पार्टियों ने किया, लेकिन राजद ने कम समय में बेहतर परफॉरमेंस दिखाया। राजद हुर-हार वाली पार्टी से अलग एक अनुशासित पार्टी के रूप में तेजस्वी यादव के नेतृत्व में उभरेगी तो बेहतर होगा। चुनाव में जदयू की स्थिति बिगड़ी तो उसका टूटना भी तय होगा। ललन सिंह और आरसीपी जैसे नेता पूरे चुनाव में दम-खम के साथ सामने नहीं आए। इसका मतलब समझना चाहिए। दोनों को केन्द्र में मंत्री बनने से रोका गया था।
इस चुनाव ने बिहार की राजनीति में तेजस्वी यादव, चिराग पासवान, मुकेश सहनी जैसा नया युवा नेता दिया। चुनावी राजनीति तो इन्होंने पहले भी की पर इस बार की राजनीति ने इन्हें नए तरीके से पहचान दी है।
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