कॉलम- जनता मालिक

बिहार की उच्च शिक्षा पर बाहरी का कब्जा हो गया है। नतीजा बिहारी वर्सेज बाहरी की लड़ाई सड़क पर उतरने को तैयार है। लोग कहने लगे हैं कि बिहार सरकार का कोई इकबाल उच्च शिक्षा पर नहीं दिख रहा है। इससे बिहार के छात्रों में बड़ी निराशा है। बिहार में विधान सभा चुनाव होने वाले हैं और इस नाराजगी का तनिक भी अहसास सरकार को नहीं है। दूसरी तरफ मध्य प्रदेश की सरकार ने फैसला लिया है कि राज्य की सरकारी नौकरियों में वहां के लोगों को ही बहाल किया जाएगा। मध्य प्रदेश सरकार का यह फैसला संवैधानिक होगा।

अब बात करते हैं बिहार सरकार की। बिहार सरकार की नौकरियों, खास तौर से असिस्टेंट प्रोफेसर की बहाली में यह आरोप लगता रहा है कि यहां बिहार से ज्यादा बाहरी बहाल हो रहे हैं। सरकार की ओर से कहा गया है कि असिस्टेंट प्रोफेसर की बहाली के लिए निर्धारित प्रक्रिया में सरकार बदलाव करेगी। सरकार को यह ध्यान रखना चाहिए कि बिहार में यूजीसी के नियम के अनुसर पीएचडी सही अर्थों में 2013 से बिहार के अलग अलग विश्वविद्यालयों में लागू हुआ।  यानी यूजीसी का 2009 का रेगुलेशन 2013-14 तक लागू होता रहा। ऐसे में 2014 के पहले की डिग्री को खारिज करना या बिहार में ही मान्यता नहीं देना बहुत ही गलत होगा। दूसरी बात युवाओं के मन में यह डर अभी से ही समाया हुआ है कि कहीं फिर से बाहरी छात्र ही असिस्टेंट प्रोफेसर की बहाली पर कब्जा न जमा लें। ऐसा इसलिए है कि 2014 में ऐसी ही बहाली में बिहार के छात्र बुरी तरह से पिछड़ गए थे। बाहरी छात्रों के नाम ज्यादातर सीटें चली गईं थीं। आरोप लगा कि इंटरव्यू बोर्ड में बाहरी का वर्चस्व था और बाहरी एक्सपर्ट ने खुलकर बाहरी छात्रों पर दिल कुर्बान किया।

छात्र बताते हैं कि पश्चिम बंगाल की वेकेंसी में यह होता है कि बंग्ला भाषा बोलना, लिखना, समझना आना चाहिए। यही नहीं इसकी बात होती है कि 10 वीं में बंगला एक भाषा के रुप में रही हो। साउथ से निकलने वाली वेकेंसी में भी इस तरह की बातें होती हैं। मध्य प्रदेश में दो साल पहले असिस्टेंट प्रोफेसर की बहाल आई थी। उसमें यह कहा गया कि मध्यप्रदेश के लोगों के लिए अधिकतम उम्र सीमा 40 साल और अन्य राज्यों के छात्रों के लिए अधिकतम उम्र सीमा 28 साल होनी चाहिए। सोचिए बिहार में 28 साल उम्र के कितने नेट, पीएचडी स्टूडेंट मिलेंगे। मध्य प्रदेश पब्लिक कमीशन से आई बहाली में कहा गया था कि जो मध्य प्रदेश में गेस्ट फेक्ल्टी काम कर रहे हैं उन्हें 25 नंबर का वेटेज दिया जाएगा।

 

बिहार जैसा खुला खेत पूरे देश में कहीं नहीं होगा, जहां का चारा बाहरी चरते हैं और बिहारी, बिहार सरकार की नीति के साथ सिर धुनते रहते हैं।

उत्तर प्रदेश में असिस्टेंट प्रोफेसर की बहाली में जो परीक्षा होती है उसमें कितने बिहारी सेलेक्ट हो रहे हैं? उससे अलग बिहार में कितने आते हैं देख लीजिए। यही हाल बिहार की ज्यूडिशियल सर्विस का है जहां बाहरी युवा भर गए हैं और ज्यादातर बिहारी मुंह ताक रहे हैं।

छात्र अगर यह सवाल उठाते हैं तो इसमें गलत क्या है कि बीपीएससी से होने वाली असिस्टेंट प्रोफेसर की बहाली में बाहरी एक्सपर्ट क्यों भरे होते हैं? इससे जुड़ा नियम समझिए कि आयोग की ओर से इंटरव्यू बोर्ड के चयन के लिए चेयरमेन उत्तरदायी होता है। नतीजा खूब मनमानी  के आरोप लगते हैं। विश्वविद्यालय सेवा आयोग वेकेंसी निकालेगा तो उसके चेयरमेन ही तय करेंगे की बोर्ड में कौन-कौन होगा। जबकि विश्वविद्यालय स्तर से जो नियुक्ति की जाती है उसके लिए यूजीसी ने व्यवस्था कर दी है। यूजीसी ने नियम बना कर रखा है कि कुलपति सेलेक्शन कमेटी के चेयरमैन होंगे। सचिव रजिस्ट्रार होंगे। तीन विषय विशेषज्ञ होंगे। एससीएसटी कंडिडेट है तो एससीएसटी मेंबर होंगे। महिला मेंबर होंगी, ओबीसी रिप्रजेंटेंटिव होगा।

नतीजा यह सवाल लाजिमी है कि आखिर क्या वजह है कि कई बार आयोग के इंटरवयू बोर्ड में सारे के सारे मेंबर सामान्य जाति के ही रख लिए जाते हैं? चेयमेन और तीन एक्सपर्ट होते हैं बोर्ड में। बोर्ड का चेयरमेन, आयोग का चेयरमैन या सदस्य कोई भी हो सकता है। इसके अलावा तीन एक्सपर्ट होते हैं।

बिहार को छोड़ सभी राज्यों में यह हो रहा है कि हर राज्य किसी न किसी रुप में अपने स्टूडेंट को तरजीह देता है असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति में। कहीं इंटरव्यू में ज्यादा नंबर दिए जा रहे हैं तो कहीं कुछ और।

सवाल उठाने वाले को इसका क्या जवाब दीजिएगा बिहार में 10 में से 8 कुलपति बाहर से क्यों आ रहे हैं? बिहार सरकार जिसके पास वित्तीय अधिकार है उसे यह नहीं पता है क्या ? 2014 का रेगुलेशन किसने बनाया था? जो लोग उसमें थे वही अब ज्ञान बांट रहे हैं। सरकार का कोई दबाव क्यों नहीं है? यूपी में ऐसे क्यों नहीं हो रहा है? बिहार में ही यह सब खेल क्यों हो रहा है ?

हाल यही रहा तो एक बार फिर बिहारी बाहर होंगे और बाहरी बिहार में।

  • पहरेदार

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