- चुनाव से पहले बिहार की राजनीति में उथल-पुथल शुरू
- श्याम रजक की नाराजगी के कारण तलाशे जा रहे
- नए प्रधान सचिव से नाराजगी परवान तो नहीं चढ़ गई
संवाददाता.
पूरे दिन इसक चर्चा खूब रही कि बिहार सरकार के उद्योग मंत्री और जेडीयू के दलित चेहरे श्याम रजक ने पार्टी छोड़ने का फैसला कर लिया है। दूसरी तरफ श्याम रजक ने कहा कि अभी कुछ नहीं कहेंगे, इस विषय में कल बतायेंगे। राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि श्याम रजक जेडीयू छोड़ आरजेडी की सदस्यता ले सकते हैं। एक तरफ यह सब चल ही रहा था कि जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार की सहमिति के बाद श्याम रजक को जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह ने उन्हें पार्टी से निकालने का आदेश जारी कर दिया। पार्टी से निकाले जाने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने श्याम रजक को मंत्रिमंडल से भी बर्खास्त कर दिया। सीएम ने इसकी सिफारिश राज्यपाल से भी कर दी है।
बिहार की राजनीति में श्याम रजक पिछले तीन दशक से सक्रिय रहे हैं। वे लालू सरकार में मंत्री रहे और फिर नीतीश सरकर में भी। साल 2009 में लालू प्रसाद से मोह भंग होने के बाद श्याम रजक उसी साल जेडीयू में शामिल हो गए थे। तब हुए उपचुनाव में उनको हार की सामना करना पड़ा था। 2010 में वे फिर से जेडीयू कोटे से विधायक बने और मंत्री बने लेकिन जब रजक 2015 में महागठबंधन से विधायक बने और तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम थे तब उनको नीतीश सरकार में मंत्री नहीं बनाया गया था। तब यह चर्चा थी कि लालू प्रसाद यादव ने उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल नहीं होने दिया। नीतीश कुमार जब आरजेडी का साथ छोड़कर बीजेपी के साथ आए तो उनकी कैबिनेट में वापसी हुई। उनको उद्योग विभाग सौंपा गया। चुनाव आयोग की अभी तक की गतिविधियों के अनुसार बिहार में विधानसभा के चुनाव दो महीने बाद होंगे और इस चुनाव के पहले श्याम रजक की को मंत्रिमंडल से हटाया जाना बिहार की बड़ी राजनीतिक घटना है।
सवाल यह है कि श्याम रजक जेडीयू क्यों छोड़ना चाहते थे ?
क्या श्याम रजक ने यह समझ लिया था कि जिस फुलवारी से वे विधायक हैं वहां भी मुस्लिम वोटर जेडीयू को वोट नहीं करेंगे ? फुलवारी में मुसलमानों की आबादी अच्छी खासी है और यह आबादी सीएए सहित भूमि पूजन से नाराज बताए जा रहे हैं। बड़ी बात यह भी कि नीतीश कुमार की कोई प्रतिक्रिया भूमि पूजन पर नहीं आई। नीतीश कुमार के नरेन्द्र मोदी के आगे राजनीतिक रुप से कमजोर साबित होने के संकेत मिलने लगे ! इससे भी मुसलमानों में नाराजगी है?
दूसरी बात यह कि अपने विभाग के नए प्रधान सचिव से उनके संबंध हद पार तो नहीं चले गए थे? इसकी खूब चर्चा रही कि नए प्रधान सचिव सिद्धार्थ उन्हें तरजीह नहीं दे रहे थे। इससे श्याम रजक काफी नाराज चल रहे थे।
तीसरी बात यह कि क्या श्याम रजक की पूछ जेडीयू में पहले जैसी नहीं रह गई है और वे ऊब गए हैं?
चौथी बात यह कि क्या आरजेडी की ओर से श्याम रजक को भविष्य की राजनीति में कोई बड़ा पद देने की बात तो नहीं कही गई?
पांचवीं बात यह कि जीतन राम मांझी के जेडीयू में वापसी के संकेत के बाद कहीं वे यह तो नहीं समझने लगे हैं कि उन्हें तरजीह देने के बजाय दूसरे दलित नेता को तरजीह दी जा रही है। जिस समय जीतन राम मांझी को नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री बनाया था उस समय श्याम रजक का नाम भी मुख्यमंत्री पद के लिए उछला था।
ये तमाम सवाल एक तरफ उठ रहे थे और लोगों को इंतजार था कि श्याम रजक मंगलवार को आरजेडी का दामन थामने के बाद क्या आरोप जेडीयू पर लगाते हैं उससे पहले ही उन्हें जेडीयू से निकाल दिया गया और मंत्रिमंडल से भी बर्खास्त कर दिया गया।