- शिवानंद तिवारी, आरजेडी के वरिष्ठ नेता
दो तीन दिन पहले चिराग (पासवान) का एक फोटो देखा. शरबत पीने वाले पाइप से सत्तू पीते. अजीब लगा. रामविलास भाई का नारा था कि मैं उन घरों में दिया जलाने चला हूँ जहाँ सदियों से अंधेरा है. इसीलिए उन्होंने अपने बेटे का नाम चिराग़ रखा.
कर्पूरी और तिवारी जी के बाद जो पीढ़ी बिहार की राजनीति में उभरी उनमें तीन नाम अगली क़तार में आए. लालू , नीतीश, और रामविलास. इन तीनों में रामविलास भाई ही सीनियर थे. रामविलास जी 69 में ही विधायक बन गये थे. जबकि लालू जी 77 में पहली बार चुनाव लड़े और लोकसभा सदस्य बने. 77 में रामविलास भाई भी हाजीपुर से लोकसभा के सदस्य बने थे. नीतीश जी 85 में पहली मर्तबा विधायक बने. इस प्रकार बिहार की राजनीति में रामविलास भाई सबसे सीनियर थे. रामविलास जी की एक और ख़ासियत थी. उनकी राजनीति की शुरुआत दलित राजनीति से नहीं बल्कि समाजवादी राजनीति से हुई. समाजवादियों का नारा ‘पिछड़ा पावे सौ में साठ’ नारा लगाने में उनकी आवाज़ किसी से कम नहीं थी. किन्हीं कारणों से वे भाजपा वाले गठबंधन में रहे. जब गुजरात के गोधरा कांड के बाद उन्होंने वाजपेयी मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया था. काफी दिनों वे पुनः उसी गठबंधन में लौट गए थे. मृत्यु के समय वे मंत्रीमंडल के सदस्य थे.
वह दृश्य मुझे याद है जब बच्चे की तरह रामविलास भाई चिराग़ का हाथ पकड़कर मीडिया के सामने ले आए थे. उन्होंने घोषणा की थी कि चिराग़ ही मेरा वारिस होगा. उन दिनों पारस लड़ रहे थे रामविलास पासवान का असली वारिस मैं हूँ. उस समय मैंने बयान दिया था कि वारिस भाई नहीं बेटा होता है.
चिराग़ को मैं गौर से देखता रहा हूँ. उनके माथे पर लंबा लाल टीका ! हाथ में रंग बि रंगा चौड़ा बद्धी या कलावा देखकर अजीब लगता है ! टीका और बद्धी के मामले में चिराग़ के सामने ब्राह्मण राजपूत फेल हैं. पाइप से सत्तू पीते फोटो देखा . उसी समय अमेरिका के सबसे बड़े शहर न्यूयार्क के मेयर के सबसे ताकतवर उम्मीदवार जोहरान ममदानी का हाथ से दालभात खाते फोटो याद आया. एक विदशी अपना देशीपन दिखाने में कोई संकोच नहीं कर रहा है. दूसरा खाँटी देशी होते हुए भी पसंद में देशीपन नहीं है. चिराग़ बिहार की सत्ता पाने की हड़बड़ी में दिखाई देते हैं. लेकिन अभी भी बिहार की राजनीति में पुराने केंद्र क़ायम हैं. लालू और नीतीश. लेकिन यह तय है कि बिहार विधानसभा का इस चुनाव के बाद जो चुनाव होगा उसमें आज की युवा पीढ़ी ही केंद्र होगी. हमारी जाति व्यवस्था अद्भुत है. जैसे पुश्तैनी जायदाद पर बग़ैर किसी करनी के अगली पीढ़ी का नाम चढ़ जाता है. यही परंपरा जाति व्यवस्था ने राजनीति में भी बना दिया है.
