• कहा- बच्चों के लिए बाइलिंग्वल किताबें तैयार, प्राइमरी को छोड़ बाकी स्कूलों को कलर्क मिलेगा
  • हमारी कोशिश है जितनी कक्षाएं हैं उतने कमरे बन जाएं

संवाददाता. पटना

शिक्षा विभाग ने शनिवार से नई पहल की है। विभाग के अपर मुख्य सचिव डॉ. एस. सिद्धार्थ हर शनिवार सोशल मीडिया पर आएंगे और सवालों के जवाब देंगे। उन्होने 2 नवंबर से इसकी शुरुआत भी की। 10 शिक्षकों के सवालों के जवाब उन्होंने दिए। इस बाबत ई-मेल आईडी जारी की गई है- acsbihar@gmail.com जिस पर प्रश्न भेजा सकता है। सिद्धार्थ ने कहा कि बच्चों के कुछ सवाल भी हम इसमें आगे से लेंगे।

टैब बताएगा कितने और कौन बच्चे आए, इसी पर हाजरी बनेगी

रवीन्द्र साथ ने बेनीपट्टी से सवाल किया कि ई शिक्षा कोष से बच्चों की उपस्थिति भी ली जा सकती है क्या? डॉ.सिद्धार्थ ने कहा कि टैब लाने की प्रक्रिया में हम हैं। बच्चों की गिनती टैब फोटो के जरिए कर लेगा। इसका ट्रायल भी हो गया है। सक्सेस भी है। इसके लिए उचित ट्रेनिंग और व्यवस्था की जरूरत है। जनवरी से इसको शुरू करेंगे। टैब चेहरा से नाम का मिलान करके मुझे बता देगा कि कितने और कौन-कौन बच्चे आए। किसी से पूछने की जरूरत नहीं होगी।

सरकारी स्कूलों में काफी योग्य शिक्षक

ललन कुमार ने सुपौल से पूछा कि योग्य शिक्षकों के बावजूद सरकारी स्कूलों में लोगों का विश्वास कम क्यों है? डॉ. सिद्धार्थ ने विस्तार से इस पर बोला। उन्होंने कहा कि मैं उर्दू माध्यमिक विद्यालय बाराचट्टी गया था। अच्छी बिल्डिंग थी। लेकिन बगल के स्कूल में प्राइवेट स्कूल था। जब सरकारी स्कूल में गए तो शिक्षक भी अच्छे थे, इंफ्रास्ट्रक्चर भी बढ़िया था पर प्राइवेट स्कूल खचाखच भरा था। सरकारी स्कूल के बच्चे आराम से टहलते हुए 10 बजे स्कूल जा रहे थे जबकि प्राइवेट स्कूल में समय से बच्चे पहुंच चुके थे। सरकारी स्कूल के बारे में सामाजिक मानसिकता है। अभिभावकों को सरकारी स्कूलों को गंभीरता से लेना चाहिए। अभिभावक को देखना चाहिए कि हम यूनीफॉर्म के पैसे देते हैं, भोजन देते हैं। शिक्षा फ्री है। सीरियस पढ़ाई हो रही है। गुड-मॉर्निंग, गुड नाइट बोलने और टाई लगाने से गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा नहीं हो जाती। यू ट्यूबर्स कई बार सरकारी स्कूल में घुस जाते हैं। मैं कहता हूं उनसे कि प्राइवेट स्कूल में घुसकर शिक्षकों से सवाल कीजिए। सरकारी स्कूल में बीपीएसी से पास करके, सक्षमता परीक्षा पास कर शिक्षक आए हैं। समाज का मानसिकता बदलना चाहिए।100 में 20 रुपए सरकार शिक्षा पर खर्च करती है। ये समाज का पैसा है।

बाइलिंग्वल किताबें

बीहट, बेगूसराय के शिक्षक रंजन कुमार ने वेतन को लेकर अलग-अलग आदेश से जुड़ा सवाल उठाया। डॉ. सिद्धार्थ ने कहा कि संचालन के लिए अलग-अलग गाइड लाइन निकाली गई है। लेकिन एकरुपता में हमारा फोकस है। हर गाइडलाइन में पुरानी गाइडलाइन का उल्लेख रहता है। हमलोगों ने निरीक्षण, एटेंडेंस के लिए चार पत्र निकाले लेकिन एक सिंगल कंपेंडिंग निकालने जा रहे हैं ताकि जो भी शिक्षक हैं उसे रेफर कर सकते हैं। जो भी पत्र हम निर्गत करेंगे उसकी पीडीएफ फाइल हर शिक्षक तक पहुंच जाए इसका निर्देश हमने दिया है ताकि कोई कन्फ्यूजन नहीं रहे।
अंबुज कुमार बनमनखी, पूर्णिया का था। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को लेकर उनका सवाल था। इस पर डॉ. सिद्धार्थ ने कहा कि ये प्रश्न बार-बार उठता रहता है कि अंग्रेजी मीडियम में भी पढ़ाई हो। हमारे मंथन कार्यक्रम में सभी पदाधिकारी ने कहा कि स्थानीय भाषा में भी चीजें सिखायी जानी चाहिए। कक्षा एक में मैथिली, भोजपुरी, अंगिका में पढ़ाई हो। लेकिन मैं मानता हूं कि अंग्रेजी महत्वपूर्ण भाषा है। आठवीं के बाद अंग्रेजी में भी पढाई होनी चाहिए। हमलोगों ने बाइलिंग्वल किताबें बना चुके है। प्रथम चरण में स्कूल की लाइब्रेरी में हम आठवीं के बाद के वर्ग के लिए उपलब्ध करा रहे हैं। यह एक तरफ हिंदी में और दूसरी तरफ अंग्रेजी में है।

प्राइमरी को छोड़ बाकी स्कूलों के लिए कलर्क उपलब्ध कराए जाएंगे

ओलंपियाड जैसी परीक्षा को लेकर सलीस अखलाख अहमद ने मसौढ़ी से पूछा। डॉ. एस. सिद्धार्थ ने कहा कि राज्य में दो करोड़ स्कूली बच्चे हैं। लॉजिस्टिक का भी इश्यू है। हमलोग क्लास 5 और क्लास 8 में अपने स्तर से ओलंपियाड कराएंगे। मैथ और साइंस का हम शुरू करेंगे। क्लास 5 में प्रतिभा खोज हम शुरू करेंगे।
सारण से सिद्दीकी ने पूछा कि क्या एक विद्यालय के लिए एक कलर्क प्रदान किया जा सकता है? डॉ. सिद्धार्थ ने कहा कि हम चाहते हैं शिक्षक और प्रधानाध्यापक पूरा समय पठन-पाठन में लगाएं। उत्क्रमित विद्यालय छह हजार दौ सौ हैं, में पद सृजित किए हैं। अन्य विद्यालय में भी कलर्क होंगे। मीडिल और हाई स्कूल में हम चाहेंगे कि एक कलर्क हों। प्राइमरी स्कूल में तो ये अभी संभव नहीं है उनकी संख्या काफी है।

संक्षिप्त और गुणवत्तापूर्ण ट्रेनिंग हो

ललन कुमार राय ने शिक्षकों के प्रशिक्षण की गुणवत्ता से जुड़ा सवाल पूछा। डॉ.सिद्धार्थ ने कहा कि प्रशिक्षण की गुणवत्ता को लेकर हम चिंतित हैं। एक दिन जाने और एक दिन आने में लगता है, भूमिका बांधने में एक दिन लगता है। हम चाहेंगे कि यह संक्षिप्त हो और गुणवत्तापूर्ण हो। इसका फीडबैक भी हम चाहेंगे। ट्रेनिंग सेंटर से कुछ स्कूल को भी हम जोड़ेंगे कि जो सिखाया वह कितना लागू हो रहा स्कूलों में।
शशिकांत ने बभनगामा से शिक्षा सेवक से जुड़ा सवाल पूछा। डॉ.सिद्धार्थ ने कहा कि टोला सेवक व तालिमी मरकज बहुत महत्पूर्ण हैं। ये महादलित व अन्य टोलों में काम करते हैं। बच्चों को समय पर इन्हें लाना है। महादलित, अल्पसंख्यक के बच्चे ठीक से पढ़ें यह हमारी कोशिश है।

हमारी कोशिश है जितनी कक्षाएं हैं उतने कमरे बन जाएं

अर्पणा राज, बोधगया ने सवाल किया कि पैरेंट्स टीचर मीटिंग में अभिभावक कम जुड़ते हैं। इस पर डॉ. सिद्धार्थ ने कहा कि अभिभावक से पूछ कर समय तय करना चाहिए। उस दिन हम स्कूल की टाइमिंग चेंज कर देंगे। हमारी कोशिश है कि अभिभावक बच्चे की शिक्षा में रूचि लें, तभी बच्चों की शिक्षा पूर्ण होगी। शिक्षक और अभिभावक दोनों के लिए अनुकूल समय हो।
परिहार से प्रियंका कुमारी ने पूछा कि कई बार स्कूलों में कई कक्षाओं के बच्चों को एक कमरे में पढ़ाया जाता है? जवाब में डॉ. सिद्धार्थ ने कहा कि जितनी भी कक्षा हैं उतने कमरे हो जाएं हमारी कोशिश है। लेकिन जब तक यह नहीं बन जाता उसमें हम शिफ्ट वाइज पढ़ाई करवा सकते हैं। शिक्षकों की समस्या हम समझ रहे हैं। लेकिन तब तक टाइमिंग को आगे-पीछे करके चलाएंगे।

 

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