संवाददाता.
राज्यसभा में कृषि संबंधी दोनों बिल पास कराने में उपसभापति के रूप में हरिवंश जी ने हद कर दी। सरकार के इशारे पर नियम कायदे की धज्जियां उड़ा कर जिस तरह उन्होंने बिल पास करवाया उससे बिहार अपमानित हुआ है। यह कहा वरिष्ठ आरजेडी नेता और पूर्व राज्य सभा सदस्य शिवानंद तिवारी ने।
उन्होंने कहा कि वह दिन राज्यसभा के इतिहास में काले दिन की तरह दर्ज हो गया। विरोधी दलों की क्या मांग थी ! उनको ध्वनि मत से बिल पास कराने पर एतराज था। वे मत विभाजन चाहते थे। इस मामले में राज्यसभा संचालन की नियमावली क्या कहती है ! नियमावली स्पष्ट रूप से कहती है कि एक सदस्य भी अगर मत विभाजन की मांग करता है तो आसन के लिए मत विभाजन कराना अनिवार्य है। नियमों की अनदेखी की सफाई में क्या दलील दी जा रही है ! कहा जा रहा है कि सदन अशांत था, इसलिए मत विभाजन कराना संभव नहीं था। तब तो हरिवंश जी को जवाब देना चाहिए कि ध्वनि मत से जब उन्होंने विभाजन कराया उस समय भी तो सदन उसी तरह अशांत था। उस अशांति में आपने मत विभाजन क्यों कराया ?
हमारे देश में कृषि के साथ 65 से 70 करोड़ की आबादी जुड़ी हुई है। इतनी बड़ी आबादी से संबंधित इतना महत्वपूर्ण कानून बनाने से पहले सरकार ने उनसे और उनके प्रतिनिधियों से सलाह मशविरा क्यों नहीं किया ? पंजाब और हरियाणा जहां के किसान सबसे ज्यादा उद्वेलित हैं। वह हमारे देश का अन्न भंडार है। कम से कम वहां के किसानों को तो भरोसा में लेना चाहिए था।
शिवानंद तिवारी ने आगे कहा कि पंजाब का अकाली दल आपका पुराना सहयोगी है। वह इस सवाल आपके मंत्रिमंडल से क्यों हट गया ! आप कह रहे हैं कि किसानों को विरोधी दल बरगला रहे हैं। तो क्या आप मानते हैं कि अकाली दल को भी विरोधी दलों ने बरगला कर आप से अलग कर दिया ! अगर सचमुच आप ऐसा मानते हैं तो यह आपकी शर्मनाक विफलता है।
उन्होंने कहा कि सिर्फ विरोधी दल ही नहीं बल्कि वैसे दल भी जो हमेशा सरकार के पक्ष में खड़े होते हैं, जैसे उड़ीसा का बीजू जनता दल, तमिलनाडु का सत्ताधारी दल एआईडीएमके और तेलंगाना के टीआरएस ने हमेशा मोदी सरकार का समर्थन किया है। वे लोग भी चाह रहे थे कि बिल को पहले प्रवर समिति में भेजा जाए। वहां से आने के बाद उसको कानून का रूप दिया जाए। प्रवर समिति में तो सभी दलों का प्रतिनिधित्व रहता है। इसमें क्या परेशानी थी ? इस कानून को पास कराने के लिए आप इतना अधीर क्यों हो गए ?आप कह रहे हैं कि आप किसानों को बिचौलिए से मुक्त कराने के लिए यह कानून बना रहे हैं, तो इसके बाद किसानों को कारपोरेट सेक्टर के हाथ में क्यों सौंप रहे हैं। जिस तरह आप पूर्ववर्ती सरकारों द्वारा उपार्जित परिसंपत्तियों को बेच रहे हैं, उसी तरह क्या आप इन कानूनों के जरिये कृषि क्षेत्र को भी उन्हीं लोगों के हाथ में सौंप नहीं रहे हैं ?
प्रधानमंत्री जी का आरोप है कि विरोधी दल के लोग किसानों को बरगला रहे हैं। लेकिन बरगलाने के मामले में हमारे प्रधानमंत्री जी का कौन मुकाबला कर सकता है ! देश की जनता को बरगला कर सत्ता में आए। जो भी वादा किया ठीक उसके विपरीत काम किया और आज भी वही कर रहे हैं। अब तक के अनुभव से प्रमाणित हो चुका है कि मोदीजी देश की जनता के नहीं बल्कि कारपोरेट दुनिया के प्रधानमंत्री हैं। इसलिए इस नए कानून के जरिए देश की कृषि को भी इन्होंने उन्हीं के हाथों में सौंप दिया है।