• बिहार राज्य आर्द्रभूमि (वेट लैंड्स) प्राधिकरण की बैठक की में वेट लैंड्स को बचाने और उसके विकास पर आए कई सुझाव
  • एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन कर आर्द्रभूमियों के समग्र विकास के लिए विस्तृत चर्चा होगी

संवाददाता.

उपमुख्यमंत्री-सह-पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री सुशील कुमार मोदी ने  बिहार राज्य आर्द्रभूमि (वेट लैंड्स) प्राधिकरण की बैठक की। बैठक में अपर मुख्य सचिव-सह-विकास आयुक्त-सह-उपाध्यक्ष, ग्रामीण विकास विभाग के सी.पी. खण्डूजा, आयुक्त मनरेगा, सचिव, जल संसाधन विभाग, सचिव, पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग एवं दीपक कुमार सिंह, प्रधान सचिव, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग एवं अन्य वरीय विभागीय पदाधिकारी उपस्थित थे। विषय विशेषज्ञ के रूप में श्री सोमनाथ बन्द्योपाध्याय, डॉ॰ रमन कुमार त्रिवेदी, डॉ. सूर्यभूषण एवं डॉ.  रितेश कुमार द्वारा ने भाग लिया।

प्रधान सचिव दीपक कुमार सिंह ने बताया गया कि राष्ट्रीय वेटलैंड एटलस के अनुसार राज्य मं 2.25 हे॰ से छोटे जल क्षेत्रों को छोड़कर कुल 4,416 आर्द्र भूमि  स्थल हैं जिनमें 3,003 प्राकृतिक झीलें, 238 नदियां एवं धाराएं तथा 1,175 मानव निर्मित जलाशय, पोखर, तालाब है, जिनका कुल क्षेत्रफल 3,856 वर्ग. कि.मी. है एवं राज्य के भौगोलिक क्षेत्रफल का 4 प्रतिशत है। आर्द्रभूमियां गंगा के उत्तर के जिलों में दक्षिण की अपेक्षाकृत ज्यादा है। साथ ही साथ बाढ़-सूखाड़ का शमन, भू-जल संरक्षण, प्राकृतिक उर्वारा शक्ति का संरक्षण एवं पक्षियों, मछलियों एवं अन्य जलीय जन्तुओं की प्राकृतिक जैव-विविधता का संरक्षण, माईक्रो क्लाईमेट का संतुलन इत्यादि में आर्द्र भूमियों के महत्वपूर्ण योगदान का भी उल्लेख किया गया। आर्द्रभूमि के प्रतिकूल कारकों यथा कृषि विस्तार के लिए भूमि की मांग, शहरों का विस्तार, घरेलू एवं औद्योगिक ठोस अपशिष्टों का निस्तारण, वृहत रैखिक विकास संरचनाओं (सड़क, रेल, विधुत परेषण), अत्यधिक दोहन एवं अन्य मानव जनित कारणों से आर्द्रभूमियों के हो रहे ह्रास का जिक्र किया गया।

राज्य की 4 प्राकृतिक झीलों – काबरताल (बेगूसराय), बरैला झील वैशाली, कुशेश्वरस्थान (दरभंगा), सरैयामान (प. चम्पारण) एवं मानव निर्मित जलाशय नागी एवं नकटी डैम तथा नदी अंश में – भागलपुर से कहलगांव तक गंगा नदी डाल्फिन आश्रयणी को वन्यप्राणी संरक्षण अधिनियम के तहत् वैधानिक संरक्षण प्राप्त होने का भी उल्लेख किया गया। प्रधान सचिव महोदय द्वारा आर्द्रभूमि (संरक्षण एवं प्रबंधन) नियम, 2017 में वर्णित राज्य आर्द्रभूमि प्राधिकरण के कार्यों एवं उत्तरदायित्वों तथा राज्य सरकार के शक्तियों एवं कार्यों के प्रत्यायोजन के संबंध में विस्तृत रूप से बताया गया। राज्य आर्द्रभूमि की पहली बैठक में मुख्य प्रस्ताव 25 आर्द्रभूमियों को अधिसूचित करना, काबरताल आर्द्रभूमि को रामसर साइट के रूप में नामित करना, आर्द्रभूमि क्षेत्रों का समेकित प्रबंधन योजना तैयार करना, सांख्यिकी एवं भूमि सुधार एवं राजस्व विभाग के अभिलेखों में आर्द्रभूमि के रूप में सुसंगत वर्गीकरण करने संबंधी प्रस्ताव रखे गये।

सचिव, पशु एवं मत्स्य संसाधन द्वारा बताया गया कि उनके विभाग द्वारा 9,41,000 हे॰ चौर क्षेत्र हैं जिनके लिए चौर विकास योजना के तहत चौर क्षेत्र का विकास किया जा रहा है, जिसमें चौर की गहराई बढ़ाने के क्रम में प्राप्त मिट्टी को भरकर कृषि एवं वृक्षारोपण का कार्य किया जायेगा। मुख्यतः चौर में मत्स्य पालन का कार्य किया जायेगा। इस संदर्भ में प्रधान सचिव, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग ने चौर विकास समिति में वन विभाग के पदाधिकारी के प्रतिनिधि के रूप में सम्मिलित किये जाने का सुझाव दिया गया एवं बताया कि योजना बनाते समय यह ध्यान रखा जाय कि पानी के आउटलेट एवं इनलेट अवरूद्ध नहीं हो, चौर का विशेष पारिस्थितक तंत्र होने के कारण प्राकृतिक रूप से पायी जाने वाली मछलियों को संरक्षित किया जाय एवं पानी को कृषि कार्य में उपयोग नहीं किया जाय एवं चैर के प्रभाव क्षेत्र में केमिकल, रासायनिक उर्वरक एवं कीटनाशकों का उपयोग नहीं किया जाय। साथ ही साथ यह भी कहा गया कि वर्तमान प्रावधान के अनुसार चौर विकास की जो भी योजनाएं बनाई जायेगी उसे राज्य आर्द्रभूमि प्राधिकरण से अनुमोदन कराना अनिवार्य होगा।

प्रधान सचिव, पर्यटन द्वारा बताया गया कि वन्यप्राणी एवं पक्षियों की उपस्थिति वाले आर्द्रभूमियों को पर्यटन के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण मानते हुए इसका विकास करना अपेक्षित है। सचिव, जल संसाधन द्वारा बताया गया कि सहरसा जिला की मत्स्यगंधा झील एवं वैशाली के पुष्करणी झील मे पानी सूख गया था, जिसे पुनर्जीवित किया गया है, इस संदर्भ में प्रधान सचिव, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग ने बताया कि बांध बनाने के क्रम में पानी का इनलेट बंद हो जाने के कारण चैर में पानी की कमी हो जाती है, ऐसी स्थिति में वर्षा/बाढ़ के समय सभी स्लुइसगेट को कार्यरत रखने से चैर में पानी की कमी नहीं होगी। कांवर झील में पानी बना रहे इसके लिए योजना बनाने का अनुरोध किया गया। विषय विशेषज्ञ, डॉ. सुरेश बाबू ने बताया कि शहरी क्षेत्र के आर्द्रभूमियों की भी मैपिंग कराकर जीर्णोद्धार किया जाय, जिससे बाढ़ नियंत्रण में सहायता मिलेगी। डॉ. सूर्यभूषण द्वारा आर्द्रभूमियों का विशेषज्ञों द्वारा अध्ययन कराकर वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित करने का सुझाव दिया गया। डॉ. रितेश द्वारा बताया गया कि राज्य के आर्द्रभूमियों का स्वरूप परिवतित नहीं होने दिया जाय एवं जन-जागरूकता हेतु कार्यशाला का आयोजन किया जाय।

उपमुख्यमंत्री-सह-विभागीय मंत्री ने बैठक को संबोधित करते हुए प्राप्त सभी सुझावों के आलोक में राज्य आर्द्रभूमि प्राधिकरण द्वारा रखे गये प्रस्ताव का अनुमोदन करते हुए निदेशित किया गया कि सभी हितधारकों के साथ एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन कर आर्द्रभूमियों के समग्र विकास हेतु विस्तृत चर्चा की जाए। आर्द्रभूमियों के अभिलेखों को अद्यतन किया जाय। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, बिहार के वेब पोर्टल पर राज्य आर्द्रभूमि प्राधिकरण का वेबसाइट बनायी जाए जिसमें आर्द्रभूमियों से संबंधित सारी सूचनाएं रखी जायेगा। आर्द्रभूमि (संरक्षण एवं प्रबंधन), नियम,2017 के प्रावधानों के तहत् चौर क्षेत्र के विकास करने का निदेश दिया गया। आर्द्रभूमियों में वैसे स्थलों को चिन्ह्ति किया जाय, जो पक्षी बिहार के रूप में विकसित किया जा सके। कांवर झील में पानी की उपलब्धता बनी रहे इसके लिए अन्य विभागों के साथ समन्वय कर प्रयास किया जाय। साथ ही साथ अन्य आर्द्रभूमियों में भी पानी की उपलब्धता बनी रहे इसका ध्यान रहे।

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